पंक्तियां - बस कुछ दिन और
बस कुछ दिन और, फिर भूल जाऊँगा तुम्हे,
जो बातें तुमने कही थी कभी,
जो वादा मैंने किया था कभी,
जिन्हे हम निभा न पाए,
जो पूरी हो सकी न कभी,
बस कुछ दिन और, फिर भूल जाऊँगा तुम्हे l
जो किस्मत वफ़ा लिखा था तक़दीर में,
वो हमको नसीब हुई न कभी,
जिसका होना उम्र भर लिखा था नहीं,
वो होगा कैसे किसी का पूरा कभी,
बस कुछ दिन और, फिर भूल जाऊँगा तुम्हे।
जो ख़्वाब देखे वो अधूरे ही रहे,
जो मांगी थी दुआ वो पूरी न हुई,
जिस झूठ को मान बैठे हकीकत,
अब उसकी सजा तो मिलनी ही थी,
बस कुछ दिन और फिर भूल जाऊँगा तुम्हे।
हासिल-ए-'उम्र-ए-वफ़ा क्या बताये,
सिर्फ दर्द-ए-ग़म ही मिला है मुझे,
रिश्ता-ए-'उम्र अब याद रहेगा,
'उम्र-ए-रफ़्ता क्या मिला है मुझे,
बस कुछ दिन और फिर भूल जाऊँगा तुम्हे।
धन्यवाद्!
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