कविता - मेरा गाँव



शीर्षक - मेरा गाँव


वो मोहल्ला याद हैं, वो गलिया याद हैं,

वो रातों को सोचते रहना, वो दिन के ख्वाब याद हैं मुझे,

मेरा गाँव याद है मुझे l 


वो वादे याद हैं, वो इरादे याद हैं,

वो बारिश की रिमझिम, वो बादलो का गरजना याद हैं मुझे,

मेरा गाँव याद है मुझे l 


वो दोस्तों से शाम को बगीचे में मिलना,

वो किसी और से अपने पैगाम उन तक भिजवाना,

वो उनके जवाब के इंतज़ार की ख़ुशी में अपना वक़्त बिताना याद है मुझे,

मेरा गाँव याद है मुझे l 


वो गलियों में रुक रुक के उनको देखना,

वो उनके मुड़ने पे खुद निकल जाना,

वो उनसे बात करने की चाह में उनकी सहेलियों को दोस्त बनाना,

वो उन्हें एक बार देखने के बहाने बार बार उनकी गली के चक्कर लगाना याद हैं मुझे,

मेरा गाँव याद है मुझे l 


वो नजरे झुका के उनका चले जाना,

वो कहना बहुत था पर कुछ कह ना पाना,

वो सोच सोच के रातो को अपनी नींदें उड़ाना,

वो सुबह उठ के फिर से उसी सोच में डूब जाना याद है मुझे,

मेरा गाँव याद है मुझे l 


वो पानी का छत्त से टपकना,

वो रात को अँधेरे में दिए जलना,

वो माँ का चूल्हे पे रोटी बनाना,

वो साथ में बिठा के अपने हाथो से मुझे खिलाना याद हैं मुझे,

मेरा गांव याद है मुझे l 


धन्यवाद्!


Comments

Charu said…
Very nice lines 😊
Unknown said…
Kya khoob likha hai :)
Harikala Thapa said…
Bahut acchi kavita hai👌
Dev Kumar said…
Thank you all :)
Hasnain said…
Nice bahut achi kavita hai

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